तलवारों पे सर वार दिये
अंगारों में जिस्म जलाया है
तब जा के कहीं हमने सर पे
ये केसरी रंग सजाया है,
ऐ मेरी ज़मीं, अफ़सोस नही जो तेरे लिये १०० दर्द सहे
महफ़ूज़ रहे तेरी आन सदा, चाहे जान मेरी ये रहे ना रहे
ऐ मेरी ज़मीं, महबूब मेरी
मेरी नस-नस में तेरा इश्क़ बहे
"फीका ना पड़े कभी रंग तेरा, " जिस्मों से निकल के खून कहे
तेरी मिट्टी में मिल जावां
गुल बनके मैं खिल जावां
इतनी सी है दिल की आरज़ू
तेरी नदियों में बह जावा
तेरे खेतों में लहरावां
इतनी सी है दिल की आरज़ू
सरसों से भरे खलिहान मेरे
जहाँ झूम के भांगड़ा पा ना सका
आबाद रहे वो गाँव मेरा
जहाँ लौट के वापस जा ना सका
ओ वतना वे, मेरे वतना वे
तेरा-मेरा प्यार निराला था
कुरबान हुआ तेरी अस्मत पे
मैं कितना नसीबों वाला था
तेरी मिट्टी में मिल जावां
गुल बनके मैं खिल जावां
इतनी सी है दिल की आरज़ू
तेरी नदियों में बह जावां
तेरे खेतों में लहरावां
इतनी सी है दिल की आरज़ू
केसरी....
ओ हीर मेरी, तू हँसती रहे
तेरी आँख घड़ी भर नम ना हो
मैं मरता था जिस मुखड़े पे
कभी उसका उजाला कम ना हो
ओ माई मेरी, क्या फ़िक्र तुझे
क्यूँ आँख से दरिया बहता है
तू कहती थी, तेरा चाँद हूँ मैं
और चाँद हमेशा रहता है
तेरी मिट्टी में मिल जावां
गुल बनके मैं खिल जावां
इतनी सी है दिल की आरज़ू
तेरी नदियों में बह जावां
तेरी फ़सलों में लहरावां
इतनी सी है दिल की आरज़ू
केसरी......